नई दिल्ली: सुप्रीम कोर्ट ने सुनाया ऐतिहासिक फैसला। सुप्रीम कोर्ट ने अपने आदेश में कहा कि बहू को उसके पति के माता-पिता के घर में रहने का पूरा अधिकार है। सुप्रीम कोर्ट ने बहु पक्ष में एक ऐतिहासिक फैसला लेते हुए, अपने आदेश में कहा कि बहू को उसके पति के माता-पिता के घर में रहने का अधिकार है।
जस्टिस अशोक भूषण की अध्यक्षता वाली तीन न्यायाधीशों की पीठ ने तरुण बत्रा मामले में दो न्यायाधीशों की पीठ के फैसले को पलट दिया गया। कोर्ट ने अपने फैसले में कहा कि, घरेलू हिंसा को देखते हुए पत्नी को अपने पति के माता-पिता के घर में रहने का अधिकार मिलना चाहिए।
सुप्रीम कोर्ट ने बहू को लेकर किया ऐतिहासिक फैसला
सुप्रीम कोर्ट ने इस बाबत दिए अपने फैसले में साफ कहा कि पति की खरीदी गई संपत्ति पर पत्नी का अधिकार होगा ही। पत्नी को अपने ससुराल की साझा संपत्ति और पैतृक घर में भी रहने का अधिकार होगा। सुप्रीम कोर्ट ने अपने फैसले में घरेलू हिंसा कानून 2005 का हवाला देते हुए कई बातें स्पष्ट की है।
कोर्ट ने कहा कि जहां महिला रहती है और उसे तब तक वहां रहने का अधिकार है। जब तक वह इस बात को साबित करती है, कि वह घरेलू हिंसा की शिकार है, और वह संपत्ति के मालिक के साथ डोमेस्टिक रिलेशनशिप में है।
ट्रायल कोर्ट दोबारा मामले को देखें और अगर बहू का सिर्फ यह दावा है कि डीवी एक्ट के तहत शेयर्ड हाउस होल्ड प्रॉपर्टी में रहने का अधिकार है, तो वह आदेश देते वक्त महिला के वैकल्पिक रहने सहने की व्यवस्था को देखें।
डीवी एक्ट के तहत जब तक मेट्रोमोनियल रिलेशनशिप रहता है। तब तक वैकल्पिक रिहायस का अधिकार है। अगर बहु ससुर की संपत्ति के अधिकार को चुनौती देती है, तो कोट उसके दावे को परख कर फैसला सुनाए। अगर बहू को घर खाली करने को कहा जाए, तो उसे दूसरे घर की व्यवस्था करके दिया जाए।
सुप्रीम कोर्ट ने अपने डेढ़ सौ पेज के फैसले में घरेलू हिंसा कानून 2005 का हवाला देते हुए। ये स्पष्ट किया है। तरुण बत्रा ने इस मामले में दो जजो के बीच में कहा था, कि कानून में बेटियां अपने पति के माता-पिता के स्वामित्व वाली संपत्ति में नहीं रह सकती है।
अब तीन सदस्यीय पीठ ने तरुण बत्रा के फैसले को पलटते हुए। 6-7 सवालों के जवाब दिए हैं। कोर्ट ने कहा कि पति की अलग-अलग संपत्ति के साथ साझा घर में भी बहू का अधिकार है।