Dial 100 Movie: मनोज बाजपेयी इस बात से खुश हैं कि वो अपनी नई क्राइम-थ्रिलर ‘डायल 100’ फिल्म के साथ आ रहे हैं। रेंसिल डिसिल्वा के निर्देशन में बनी इस फिल्म में नीना गुप्ता और साक्षी तंवर भी हैं। यह फिल्म एक पुलिस वाले के इर्द-गिर्द घूमती है, जिसे एक महिला का कॉल आता है। और, कैसे वो उसकी मदद करने के चक्कर में अपने परिवार को मुसिबत में डाल लेता है
डायल 100 एक ऐसा कॉल नंबर है जो हर एक नागरिक को इसलिए मुहैया कराई गई है कि अगर आप किसी तकलीफ में हैं या किसी डेंजर में हैं तो आपको यह नंबर डायल करना है। ऐसे में क्या होता है जब इस नंबर के साथ कोई प्रैंक खेल खेलता है। डायल 100 की कहानी, कमजोर पटकथा और निर्देशन की वजह से बांध नहीं पाती। यहां थ्रिल कमजोर है और थोड़ी देर में ही तमाम रहस्य खुल जाते हैं। ऐसे में दर्शक की उमंग और उत्साह देर तक टिक नहीं पाते।
Dial 100 Movie की पूरी कहानी
डायल 100 यही बताती है मुंबई के इमरजेंसी पुलिस विभाग में सीनियर पद पर बैठे पीआई निखिल सूद (मनोज बाजपेयी) के लिए एक फोन कॉल जटिल पहेली बन जाता है। वह नाइट ड्यूटी पर है और उसका किशोरवय बेटा अपनी मां (साक्षी तंवर) की बात नहीं सुनता। देर रात पार्टियों में जाता है, सूद न बेटे को समय दे पाता है और न पत्नी को। अतः वह कैसे मामला सुलझाए। बात तब और उलझ जाती है, जब कॉल करने वाली महिला सीमा पल्लव (नीना गुप्ता) अजीबोगरीब सवाल करती है। क्या तुम अच्छे पुलिस ऑफिसर हो, क्या कभी रिश्वत नहीं ली। वह कहती है कि नॉरमल लोगों को प्रोटेक्ट करने वाला अगर उन पर जुल्म करने लगे तो उसकी सजा नॉरमल से ज्यादा होनी चाहिए।
कहानी में बढ़ते हुए रहस्य के साथ यह बात खुलती है कि सीमा ने कुछ समय पहले अपना जवान बेटा खोया है और उसकी वजह है एक रईस युवक। जिसने ड्रग्स के नशे में सीमा के बेटे पर गाड़ी चढ़ा दी। वह उस युवक से बदला चाहती है। मगर इसका निखिल, उसकी पत्नी और बेटे से क्या संबंध है।
फिल्म डायल 100 जी5 पर रिलीज
जी5 पर रिलीज हुई लेखक-निर्देशक रेंसिल डिसिल्वा की डायल 100 सीधे-सरल प्लॉट पर बढ़ती है। इसमें घुमाव-फिराव या उतार-चढ़ाव नहीं हैं। एक रात के कुछ घंटों की इस कहानी में दृश्य और संवाद लंबे हैं। सीमा पल्लव का बेटे को खोने का दुख घूम-फिर कर बार-बार लौटता है। बेटे को खोकर उसमें सिर्फ डिप्रेशन और गुस्सा ही नहीं है। वह उन्हें मारना चाहिए, जो इस दर्द की वजह हैं। मगर फोन पर बात करते हुए निखिल सूद उससे सवाल करता है कि क्या ऐसा करने से दर्द कम हो जाएगा और अगर मरना-मारना ही है तो 100 नंबर क्यों डायल किया। कोई भी यह नंबर तब डायल करता है, जब हादसे की तरफ बढ़ते हुए उसमें कहीं न कहीं उम्मीद होती है क्योंकि जिंदगी खूबसूरत है. उसे झटके में खत्म नहीं किया जा सकता।
कहानी थ्रिलर जैसी बिल्कुल नहीं है, कहानी का एजीक्यूशन सही तरीके से नहीं हो पाया है। लंबी अवधि के कारण फिल्म धीरे धीरे बोर करने लगती है। अच्छे कलाकारों की मौजूदगी के बावजूद फिल्म की कहानी अट्रैक्ट नहीं करती है। हर बार लगता है आगे कुछ और बेस्ट होगा। लेकिन कुछ भी नहीं होता है। क्लाइमेक्स चौंकाने वाला नही था।मनोज ने हमेशा की तरह इस बार अपने किरदार को बखूबी निभाया है। नीना और साक्षी का काम भी काफी अच्छा है