नई दिल्ली: लद्दाख में चीन की सेना की ओर से भारतीय सैनिक पर माइक्रोवेव हथियारों के इस्तेमाल किए जाने के दावे को भारतीय सेना ने फर्जी बताया है। भारतीय सेना ने इस दावे का खंडन किया है। जिसमें चीन के एक प्रोफेसर ने कहा था कि लद्दाख में सीमा विवाद के दौरान हुई झड़प में चीनी सेना ने भारतीय सैनिक को मात देने के लिए माइक्रोवेव हथियार का इस्तेमाल किया था। जिसमे भारतीय सेना ने प्रोफेसर के इस दावे को झूठा और फर्जी करार दिया है।
इस सूचना पर पीआईबी की फैक्ट चेक इकाई ने कहा है कि मीडिया के कुछ हिस्सों में चल रही ऐसी खबर बिल्कुल गलत है। पीआईबी ने कहा कि भारतीय सेना ने ये खुद से स्पष्ट किया है। चीन की पीपुल्स लिबरेशन आर्मी अपनी तरफ से कई प्रयास किए लेकिन भारतीय सैनिको को 1 इंच भी हिला नहीं सकी, फिर सैन्य स्तरीय से बातचीत में भी भारत पर इन चोटियों को छोड़ने का भी दबाव बनाया लेकिन उसे सफलता नहीं मिली। ऐसे में चीन ने अपनी प्रोपेगेंडा मशीन का सहारा लेना शुरू कर दिया है, ताकि अपने नागरिकों को अपनी नाकामी का एहसास ना दिला सके। इसलिए ऐसा प्रोपेगेंडा फैलाया जा रहा है।
आइए जानते हैं इस माइक्रोवेव हथियार के बारे में
चीन की राजधानी पेइचिंग की रेनमिन यूनिवर्सिटी के प्रोफेसर जीन कानरोंग का कहना है कि चीन ने एक घातक हथियार से माइक्रोवेव किरणों का इस्तेमाल किया है। जिसकी किरणों की चपेट में आते ही सैनिकों को भीषण दर्द और एक जगह में टिके रहने से बहुत परेशानी होने लगती है। विश्लेषको का मानना है कि इसका इस्तेमाल बंदूक जैसे हथियारों की तरह किया जाता है। 1996 में भारत और चीन के बीच हुई संधि के मुताबिक इस तरह के घातक हथियारों पर रोक है। यह हथियार बहुत घातक है जिसमें गंभीर चोट या मौत होने का खतरा होता है।
ब्रिटेन के एक समाचार पत्र के अनुसार
रेनमिन विश्वविद्यालय के अंतरराष्ट्रीय संबंधों के प्रोफेसर जिन कानरोंग ने कहां जिन लोगों ने पहाड़ी पर कब्जा कर रखा था 15 मिनट में ही दस्त करने लगे। वो वहां से तुरंत भाग खड़े हुए और हमने अपनी जमीन वापस ले ली। यह घटना 29 अगस्त की है लेकिन भारतीय सेना ने इस घटना से इंकार किया है।
दोनों देशों की सेना लद्दाख सीमा पर फिंगर इलाके में सैनिकों को पीछे हटाने पर सहमत हो गई है दोनों सैनिकों के पीछे हटने की प्रक्रिया चरणबद्ध तरीके से पूरी होगी।