Bail Pola Festival 2021: छत्तीसगढ़ का पारंपरिक पर्व पोला (‘बैल पोला’) आज है। ये पर्व खासतौर पर किसानों, खेतिहर श्रमिक मनाते हैं। इस ‘बैल पोला’ पर्व के दिन बैलों की पूजा करके खेती-किसानी में योगदान के लिए सम्पूर्ण गौ-वंश के प्रति सम्मान और आभार प्रकट किया जाता है। हालांकि ये पर्व सिर्फ छत्तीसगढ़ में ही नहीं बल्कि देश के कई राज्यों में बड़े धूमधाम से मनाया जाता है। छत्तीसगढ़ के अलावा बैल पोला का यह पर्व महाराष्ट्र, मध्य प्रदेश, तेलंगाना, कर्नाटक समेत कई राज्यों में मनाया जाता है। यह पर्व गौ-वंश के प्रति अपना आभार दिखाने का एक महत्वपूर्ण अनुष्ठान है।
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Bail Pola Festival 2021 पोला त्यौहार मनाने का इतिहास
पोला त्योहार मनाने के पीछे यह कहावत है कि अगस्त माह में खेती-किसानी काम समाप्त होने के बाद इसी दिन अन्नमाता गर्भ धारण करती है यानी धान के पौधों में इस दिन दूध भरता है इसीलिए यह त्योहार मनाया जाता है।
बेटे, बेटियों को संस्कृति व परंपराओं को समझाया जाता है
अपने बेटों के लिए कुम्हार द्वारा मिट्टी से बनाकर आग में पकाए गए बैल या लकड़ी के बैल के खिलौने बनाए जाते हैं। इन मिट्टी या लकड़ी के बने बैलों से खेलकर बेटे कृषि कार्य तथा बेटियां रसोईघर व गृहस्थी की संस्कृति व परंपरा को समझते हैं। बैल के पैरों में चक्के लगाकर सुसज्जित कर उस के द्वारा खेती के कार्य समझाने का प्रयास किया जाता है।
बेटियों के लिए रसोई घर में उपयोग में आने वाले छोटे-छोटे मिट्टी के पके बर्तन पूजा कर के खेलने के लिए देते हैं। पूजा के बाद भोजन के समय अपने करीबियों को सम्मानपूर्वक आमंत्रित करते हुए एक-दूसरे के घर जाकर भोजन करते हैं।
Bail Pola Festival 2021 पोला पर्व का महत्व
बैल दौड़ प्रतियोगिता का किया जाता है आयोजन
इस दिन बैलों का श्रृंगार किया जाता है। बैल दौड़ का भी आयोजन किया जाता है। पूरे दिन बैलों से कोई भी काम नहीं लिया जाता है। इस दिन छत्तीसगढ़, महाराष्ट्र, मध्यप्रदेश में बैल दौड़ प्रतियोगिता भी होती है। जिसमें किसान अपने बैलों को आकर्षक तरीके से सजाकर लाते हैं और बैल दौड़ प्रतियोगिता में हिस्सा लेते हैं। हालांकि कोरोना महामारी को देखते हुए इस साल बैल दौड़ प्रतियोगिता का आयोजन नहीं किया जा रहा है।
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पोला पर्व में बनने वाला पकवान
गृहणियां इस पर्व में सुबह से गुडहा चीला, अनरसा, सोहारी, चौसेला, ठेठरी, खूरमी, बरा, मुरकू, भजिया, मूठिया, गुजिया, तसमई आदि छत्तीसगढी पकवान बनाने मे लग जाती हैं। पूजा कर गाय-बैल को खिलाकर तब किसान परिवार खाता है।