पश्चिम बंगाल के विधानसभा चुनाव में ममता की बंपर जीत, जय बांग्ला’ का नारा लगाया

पश्चिम बंगाल के विधानसभा चुनाव में बंपर जीत हासिल करने के बाद सीएम ममता बनर्जी की पहली प्रतिक्रिया आई है। ममता बनर्जी ने जीत के लिए सभी को बहुत-बहुत बधाई देते हुए कहा कि मेरी पहली प्राथमिकता कोरोना पर नियंत्रण करने की होगी। यही नहीं एक बार फिर बंगाली अस्मिता को जगाते हुए ममता बनर्जी ने ‘जय बांग्ला’ का नारा दिया। इसके साथ ही ममता बनर्जी ने राज्य के लोगों से कोरोना प्रोटोकॉल का पालन करने की भी अपील की। बता दें कि चुनाव के बाद बंगाल के राज्य प्रशासन ने कोरोना से निपटने के लिए नियमों में सख्ती कर दी है।

ममता बनर्जी की जीत

बीजेपी ने इस चुनाव के लिए पश्चिम बंगाल में ‘दीदी’ ममता बनर्जी (Mamata Banerjee) को हराने के लिए अपना पूरा जोर लगाया है और प्रचार के लिए प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी, अमित शाह समेत कई केंद्रीय मंत्री लगातार बंगाल पहुंचे, जबकि तृणमूल कांग्रेस की ममता बनर्जी यहां तीसरी बार सरकार बनाने की पुरजोर इरादे से मैदान में उतरी हैं।

ममता बनर्जी की जीत, चुनाव नतीजे  आने के बाद ममता बनर्जी अपने दफ्तर में नजर आई

चुनाव नतीजे आने के बाद सीएम ममता बनर्जी कोलकाता स्थित टीएमसी दफ्तर में अपने भतीजे अभिषेक बनर्जी के साथ नजर आईं। इसी दौरान उन्होंने लोगों का अभिवादन स्वीकार किया और उन्हें जीत के लिए बधाई दी। टीएमसी के सूत्रों के मुताबिक ममता बनर्जी ने इस जीत का जश्न न मनाने का भी संदेश दिया है। उनका कहना है कि हमारी सरकार की पहली प्राथमिकता कोरोना संक्रमण पर नियंत्रण करना है। इस बीच ममता बनर्जी नंदीग्राम सीट से भी 1,200 वोटों से जीत गई हैं।

नंदीग्राम सीट से बीजेपी की जीत

बता दें कि नंदीग्राम सीट से बीजेपी के शुभेंदु अधिकारी कि जीत हुई ममता के मुकाबले चुनावी समर में थे। रविवार को सुबह 8 बजे वोटों की गिनती शुरू होने के साथ ही इस सीट पर ऊहापोह का दौर जारी था। किसी राउंड में शुभेंदु अधिकारी आगे निकल रहे थे तो कहीं ममता बनर्जी बढ़त बना रही थीं। हालांकि अंत में जीत शुभेंदु के हाथ ही लगी है। ममताा को इस सीट पर नामांकन दाखिल करने के दिन ही उनके पैर में चोट लग गई थी और इसके बाद उन्होंने व्हील चेयर पर ही पूरा कैंपेन किया था।

ममता बनर्जी का चुनावी संघर्ष

ममता बनर्जी की जीत

पांच जनवरी 1955 को कोलकाता में जन्मीं ममता बनर्जी अपने संघर्ष, सादगी और ‘मां, माटी और मानुष’ के नारे के सहारे 2011 में पश्चिम बंगाल में लेफ्ट दुर्ग को ढहा कर राज्य की पहली महिला मुख्यमंत्री बनीं। पांच साल बाद वे पहले से ज्यादा बड़ी ताकत बनकर उभरीं और दूसरी बार सीएम बनीं। तीसरी बार सीएम बनने का सपना लेकर ममता इस बार नंदीग्राम सीट से मैदान में उतरी थीं। जहां उनके पुराने साथी ने ही उन्हें टक्कर दी।

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नंदीग्राम आंदोलन से मिली ममता को पहचान नंदीग्राम सीट एक दौर से लेफ्ट के मजबूत गढ़ हुआ करता था, लेकिन नंदीग्राम के जमीन आंदोलन ने सिर्फ क्षेत्र की नहीं बल्कि प्रदेश की सियासत को ही पूरी तरह से बदलकर रख दिया है। यहां पर टीएमसी का दस साल से कब्जा है, लेकिन बीजेपी के टिकट से शुभेंदु अधिकारी के उतरने से ममता बनर्जी के लिए कड़ी चुनौती खड़ी हो गई है। हालांकि, ममता बनर्जी ने नंदीग्राम की सियासी जंग फतह करने के लिए पूरी ताकत लगा दी थी, क्योंकि इसी नंदीग्राम आंदोलन से ममता को सियासी पहचान मिली।

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पिछले दशकों की राजनीति में नंदीग्राम आंदोलन को हथियार बना कर ही वर्तमान सीएम ममता बनर्जी ने लेफ्ट को अपदस्थ करने में सफलता पाई थी। 2007 में तत्कालीन सीएम बुद्धदेव भट्टाचार्य के नेतृत्व में पश्चिम बंगाल की लेफ्ट सरकार ने सलीम ग्रुप को ‘स्पेशल इकनॉमिक जोन’ नीति के तहत नंदीग्राम में एक केमिकल हब की स्थापना करने की अनुमति प्रदान करने का फैसला किया था।

 

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