नई दिल्ली: सुप्रीम कोर्ट ने जातिगत आरक्षण पर फैसला सुनाया है। उस दौरान सर्वोच्च न्यायालय ने कहा कि कोटा पॉलिसी का मतलब योग्यता की नकारना नहीं है। इसका मकसद यह नहीं भी नहीं है कि मेघावी उम्मीदवारों को नौकरी के अवसरों से वंचित किया जाए। भले ही वे आरक्षित श्रेणी के हो। ये फैसला न्यायमूर्ति उदय ललित की अध्यक्षता वाली सर्वोच्च न्यायालय की पीठ ने आरक्षण के फायदे को लेकर सुनाया है। जातिगत आरक्षण पर अदालत ने अपना फैसला सुनाते हुए कहा कि पद भरने के लिए आवेदको को जाति के वजह उनकी योग्यता पर ध्यान देना चाहिए। किसी भी प्रतियोगिता में आवेदन का चयन पूरी तरह योग्यता के आधार पर होना चाहिए।
जाति आरक्षण पर फैसला लेते हुए जस्टिस भट्ट ने कहा
आरक्षण उध्वाधर और क्षैतिज दोनों ही तरीकों से पब्लिक सर्विस में प्रतिनिधित्व सुनिश्चित करने का तरीका है। आरक्षण को सामान्य श्रेणी के योग्य उम्मीदवार के लिए मौके खत्म करने वाले नियम की तरह नहीं देखना चाहिए। जस्टिस भट्ट ने बताया कि ऐसा करने से नतीजा जातिगत आरक्षण के रूप में सामने आएगा। जहां हर समाजिक श्रेणी आरक्षण के दायरे में सीमित हो जाएगी, और योग्यता नकार दी जाएगी। उन्होंने कहा कि सभी के लिए ओपन कैटेगरी होनी चाहिए।https://www.fastkhabre.com/archives/2459
उच्च न्यायालय ने अपने फैसलो मे माना की आरक्षित वर्ग से संबंधित कोई उम्मीदवार अगर योग्य है तो सामान्य वर्ग के भी आवेदन कर सकता है, चाहे वो कोई भी पिछड़ा वर्ग का हो। ऐसे में वो आरक्षित सीट को दूसरे उम्मीदवार के लिए छोड़ सकता है।
विशेष वर्ग में जैसे स्वतंत्रता सेनानियों का परिवार पूर्व सैनिक या एससी/ एसटी/ ओबीसी उम्मीदवार के लिए आरक्षित सीटें खाली रहती है। जिसपर सामान्य जाति के आवेदकों को मौका नहीं मिलता है। इस सिद्धांत को सुप्रीम कोर्ट ने खारिज कर दिया है।ऐसे में आरक्षण को सामान श्रेणी के योग्य उम्मीदवारों के लिए मौके खत्म करने वाले नियम की तरह नहीं देखना चाहिए।