साल 2001 में सत्ता से बेदखल होने के बाद से यह पहला मौक़ा है जब अफगानिस्तान के इन तमाम इलाकों पर तालिबान का कब्जा है। यह कब्ज़ा भी महज़ दो महीनों की गतिविधियों का नतीजा है। सिर्फ दो महीने में तालिबान ने अफ़ग़ानिस्तान के एक बड़े इलाक़े को अपने कब्ज़े में ले लिया है। साल 2001 के बाद से तालिबान के कब्ज़े में इतना बड़ा इलाक़ा कभी नहीं रहा है। वही पिछले 20 वर्षों में अफ़ग़ानिस्तान पर तालिबान के नियंत्रण का नक्शा देखें तो यह लगातार बदलता जा रहा है।
वही अमेरिकी सैनिकों की वापसी ने अफ़ग़ानिस्तान में तालिबान के कब्ज़े को निश्चित तौर पर बढ़ावा दिया है। अमेरिकी राष्ट्रपति जो बाइडेन ने घोषणा की है कि अगस्त के आख़िर तक अफ़ग़ानिस्तान की धरती पर मौजूद सभी विदेशी सैनिकों की वापसी हो जाएगी।
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अफगानिस्तान के इन तमाम इलाकों पर तालिबान का कब्जा
2001 में अमेरिका (America) ने 9/11 हमले के मास्टरमाइंड ओसामा बिन लादेन की तलाश में अफगानिस्तान में एंट्री की थी और तालिबान की सत्ता को खत्म किया था। बाइडेन प्रशासन के आने के बाद अमेरिकी सैनिकों ने अफगानिस्तान को छोड़ने का फैसला किया। इसी के साथ तालिबान के हमले तेज हो गए और आज मुल्क के 85 फीसदी इलाकों में तालिबान अपना कब्जा होने का दावा कर रहा है। पाकिस्तान (Pakistan) और ईरान से लगती सीमा के इलाकों पर अब तालिबान का कब्जा है और कंधार पर कब्जे की जंग तेज है। कई इलाकों में तालिबान ने सुरक्षा चौकियों को अपने कब्जे में ले लिया है और कई इलाकों में टैक्स तक वसूलना शुरू कर दिया है। इन इलाकों से घर-बार छोड़कर जाते लोगों की तस्वीरें आज अंतरराष्ट्रीय सुर्खियां बनी हुई हैं।
आईए जानते हैं तालिबान के चीफ के बारे में
पहले मुल्ला उमर और फिर 2016 में मुल्ला मुख्तार मंसूर की अमेरिकी ड्रोन हमले में मौत के बाद से मौलवी हिब्तुल्लाह अखुंजादा तालिबान का चीफ है। वह तालिबान के राजनीतिक, धार्मिक और सैन्य मामलों का सुप्रीम कमांडर है। हिब्तुल्लाह अखुंजादा कंधार में एक मदरसा चलाता था और तालिबान की जंगी कार्रवाईयों के हक में फतवे जारी करता था। 2001 से पहले अफगानिस्तान में कायम तालिबान की हुकूमत के दौरान वह अदालतों का प्रमुख भी रहा था। उसके दौर में तालिबान ने राजनीतिक समाधान के लिए दोहा से लेकर कई विदेशी लोकेशंस पर वार्ता में भी हिस्सा लेना शुरू किया।
ऐसे हुआ 20 साल बाद तालिबान मजबूत
साल 2001 से शुरू हुई अमेरिकी और मित्र सेनाओं की कार्रवाई में पहले तालिबान सिर्फ पहाड़ी इलाकों तक ढकेल दिया गया लेकिन 2012 में नाटो बेस पर हमले के बाद से फिर तालिबान का उभार शुरू हुआ। 2015 में तालिबान ने सामरिक रूप से महत्वपूर्ण कुंडूज के इलाके पर कब्जा कर फिर से वापसी के संकेत दे दिए। ये ऐसा वक्त था जब अमेरिका में सेनाओं की वापसी की मांग जोर पकड़ रही थी। अफगानिस्तान से अमेरिका की रूचि कम होती गई और तालिबान मजबूत होता चला गया। इसी के साथ पाकिस्तानी आतंकी संगठनों, पाकिस्तान की सेना और आईएसआई की खुफिया मदद से पाक सीमा से सटे इलाकों में तालिबान ने अपना बेस मजबूत किया।
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अमेरिका से लौटने की अपनी कोशिशों के तहत 2020 में अमेरिका ने तालिबान से शांति वार्ता शुरू की और दोहा में कई राउंड की बातचीत भी हुई। एक तरफ तालिबान ने सीधे वार्ता का रास्ता पकड़ा तो दूसरी ओर बड़े शहरों और सैन्य बेस पर हमले की बजाय छोटे-छोटे इलाकों पर कब्जे की रणनीति पर काम करना शुरू किया, और आज इसका नतीजा सबके सामने है।
अफगानिस्तान के इन इलाकों पर तालिबान का कब्जा
अप्रैल 2021 में अमेरिकी राष्ट्रपति बाइडेन ने सितंबर तक अमेरिकी सैनिकों की पूरी तरह से वापसी का ऐलान कर दिया तो तालिबान को मैदान साफ लगा और हमले तेज कर दिए। अफगानिस्तान के सैनिक पीछे हटते गए और तालिबान का कब्जा बढ़ता गया। आज तालिबान का दावा है कि अफगानिस्तान के 85 फीसदी हिस्सों पर उसका कब्जा है। काबुल के बाद अफगानिस्तान के दूसरे सबसे बड़े शहर कंधार के कई चेक पोस्ट पर तालिबान कब्जा जमा चुका है। शहर पर कब्जे की लड़ाई तेज है। पाकिस्तान से सटे इलाकों में सभी चेकपोस्ट तालिबान के कब्जे में हैं। ताजिकिस्तान बॉर्डर पर तो तालिबान के हमले के बीच अफगान सैनिकों को भागकर ताजिकिस्तान में शरण तक लेना पड़ा।
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हालांकि तालिबान हेरात और कंधार जैसे शहरों के नज़दीक आ गए हैं, लेकिन वो अभी तक इनमें से एक पर भी नियंत्रण नहीं कर सके हैं, पर जिन इलाक़ों पर उन्होंने क़ब्ज़ा किया है उनके दम पर वो शांतिवार्ता में अपनी स्थिति को मज़बूत कर सकते हैं। यहां से उन्हें टैक्स भी मिल सकता है और अन्य ज़रिए भी हासिल हो सकते हैं।संयुक्त राष्ट्र की शरणार्थी मामलों की संस्था यूएनएचसीआर के मुताबिक बदख़शां, कुंदूज़, बल्ख़, बाग़लान और ताख़र में बड़ी तादाद में लोग विस्थापित हो रहे हैं। यहां बड़े इलाक़ों पर तालिबान ने नियंत्रण कर लिया है।
तालिबान ने जिन सीमा चौकियों पर क़ब्ज़ा किया है वहां से हो रहे व्यापार पर वही टैक्स वसूल रहे हैं।हालांकि ये टैक्स कितना है इसका अंदाज़ा लगाना मुश्किल है क्योंकि युद्ध की स्थिति की वजह से कारोबार भी कम हुआ है, लेकिन एक अनुमान के मुताबिक ईरान की सीमा पर स्थित इस्लाम क़ला से ही हर महीने 2 करोड़ डॉलर तक का टैक्स जुटाया जा सकता है।